अगर भारत और चीन के लोग 'अहिंसा' और 'करुणा' पर आधारित आंतरिक शांति विकसित करने के लिए एक साथ मिल कर काम करते हैं तो दुनिया को फायदा होगा: दलाई लामा

प्राचीन भारतीय आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं: मनोरमा ईयर बुक 2023 में तिब्बती बौद्ध गुरुलिखते हैं
Trivandrum / January 5, 2023

तिरुवनंतपुरम, 05 जनवरी: दलाई लामा का कहना है कि अगर चीन, जो ऐतिहासिक रूप से बौद्ध धर्म को मानने वाला एक देश है, 'अहिंसा' और 'करुणा' के आदर्शों में निहित प्राचीन भारतीय ज्ञान का पालन करता है, और दोनों देशों मेंढाई अरब से अधिक लोग आंतरिक शांति विकसित करने के लिए काम करते हैं, तो इससे पूरे विश्व को  लाभ होगा।

मनोरमा ईयर बुक 2023 के एक विशेष लेख में 87 वर्षीय तिब्बती बुद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु ने उल्लेख किया है कि पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने कई क्षेत्रों में विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। फिर भी जिस तरह बाहरी निरस्त्रीकरण आवश्यक है, आंतरिक निरस्त्रीकरण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस बारे में, मुझे वास्तव में लगता है कि अहिंसा और करुणा के बहुमूल्य आदर्श में निहित शांतिपूर्ण ढंग से चीजों को समझने की  अपनी महान परंपरा के कारण भारत अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

ऐसा ज्ञान किसी एक धर्म से परे है और इसमें समकालीन समाज में एक अधिक एकीकृत और नैतिक रूप से स्थिर और जीवन के लिए आवश्यक तरीके को प्रोत्साहित करने की क्षमता है। इसलिए, मैं सभी को प्रोत्साहित करता हूं कि वे 'करुणा' और 'अहिंसा' को विकसित  करने की कोशिश करें।" दलाई लामा ने अपने विद्वतापूर्ण लेख में स्पष्ट किया।

उन्होंने कहा कि विश्व शांति प्राप्त करने के लिए लोगों को अपने भीतर मन की शांति की आवश्यकता है, और यह भौतिक विकास और भौतिक सुख की खोज से अधिक जरूरी है।

14वें दलाई लामा, जिन्हें तिब्बती लोग ग्यालवा रिनपोछे के नाम से जानते हैं, ने कहा कि मनुष्य का अनिवार्य स्वभाव दयालु होना है। "करुणा मानव स्वभाव का चमत्कार है, एक अनमोल आंतरिक संसाधन है और हमारे व्यक्तिगत कल्याण और समाज के भीतरसद्भाव दोनों की नींव है। जिस क्षण हम पैदा होते हैं, तब से हमारी मां हमारा ख्याल रखती है। इसलिए, बहुत छोटी उम्र से ही हम सीखते हैं कि करुणा सभी सुखों का मूल है।"

हालांकि, उन्होंने खेद जताते हुए कहा कि करुणा की यह स्वाभाविक प्रकृति तब से ही धुंधलाने लगती है जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है। इसलिए, भारतीय शिक्षा प्रणाली में 'अहिंसा' और 'करुणा' को शामिल करने की आवश्यकता है, और इसका व्यापक लाभ न केवल भारत को मिलेगा, बल्कि दुनिया भर के लोग इससे लाभान्वित होंगे।

दलाई लामा ने महात्मा गांधी को 'अहिंसा' के अवतार के रूप में सराहते हुए कहा कि वह उनके आदर्श से काफी प्रेरित रहे हैं, जिसे डॉ. मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने अपनाया था। मेरे लिए, वह सदा आदर्श राजनेता रहे हैं, एक ऐसा व्यक्ति जिसने परोपकारिता में अपने विश्वास को सभी व्यक्तिगत विचारों से ऊपर रखा और सभी महान आध्यात्मिक परंपराओं के लिए लगातार सम्मान बनाए रखा।"

दलाई लामा ने खुद को भारत के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मेहमानों में से एक बताते हुए कहा कि वह अपनी मातृभूमि से भागकर आने के बाद से,जिस पर चीनी साम्यवादियों ने हमला कर कब्जा कर लिया था, छह दशकों से अधिक समय तक इस देश में रहा था।

उन्होंने कहा, "मैं निस्संकोच यह बात कह सकता हूँ कि ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त ज्ञान नेमेरे सोचने के संपूर्ण तरीके को आकार दिया, जिसकी इमारतों के खंडहर आज भी बिहार में देखे जा सकते हैं। नालंदा परंपरा को संरक्षित करके, हम तिब्बती कठिन समय में भी मजबूत और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने में सक्षम हुए हैं। अब मैं चाहता हूं कि हम भारत को वही लौटाएं जो हम तिब्बतियों ने नालंदा से प्राप्त किया था। "अतीत में, हम तिब्बतियोंने अकसर भारतीयों को अपना गुरु और स्वयं को 'चेला,' शिष्य के रूप में माना है। लेकिन समय के साथ, कुछ मायनों से भूमिकाएं बदल गई हैं और अब शायद चेलेउस बहुमूल्य निधि को लौटाने की स्थिति में हैं।

उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों को शरण देने और उनके बच्चों को स्कूल जाने का मौका देने और तिब्बत में शिक्षा के महान केंद्रों के भिक्षुओं को अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने का अवसर देने के लिए भी भारत का आभार व्यक्त किया।

दलाई लामा ने कहा कि तिब्बती हमेशा भारतीय विचारों से काफी प्रभावित रहे हैं।

उन्होंने कहा, "सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में, उस समय जब हम निर्वासन में थे, उस दौरानहमने तिब्बती से संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करके कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों को जो लुप्त हो गए थे,सहेजना का कार्य किया।"

दलाई लामा ने कहा कि एक इंसान के रूप में, वह मानवता की एकता को बढ़ावा देने और दार्शनिक मतभेदों के बावजूद दुनिया की धार्मिक परंपराओं के बीच सद्भाव को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही, एक तिब्बती के रूप में, और एक 'दलाई लामा' के रूप में, वह तिब्बती भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। स्पष्ट रूप से यह पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में लद्दाख तकभारत के हिमालयी समुदायों के लिए जरूरी है,”उन्होंने कहा।

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