हजारों अरब डालर के वैश्विक वैलनेस बाजार में आयुर्वेद के लिए विशाल अवसर: विशेषज्ञ

हजारों अरब डालर के वैश्विक वैलनेस बाजार में आयुर्वेद के लिए विशाल अवसर: विशेषज्ञ
Panaji / December 11, 2022

पंजिम (गोवा), 11 दिसंबर। ‘आधुनिक चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद में कोई टकराव नहीं है।’ इस विषय परयहां 9वें विश्व आयुर्वेद महासम्मेलन (डब्ल्यूएसी) के एक सत्र में रविवार को वक्ताओं ने कहा कि भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद और परंपरागत पद्धतियों के  ज्ञान और  सुविधाओं के बल पर  4.4  अरब डालर के वैश्विक ‘ वेलनेस ’ बाजार का बड़ा लाभ उठा सकता है।

  सरकार की पहल ‘हील-इन-इंडिया’ (भारत में स्वास्थ्य लाभ) पर केंद्रित इस सत्र में विशेषज्ञों ने  एलोपैथी , आयुर्वेदिक, योगाभ्यास एवं आधार नियंत्रण के समन्वित प्रयोग से हृदय रोग रोग एवं पार्किंसन जैसे न्यूरो रोगों में आयुर्वेदिक पद्धति के स्वतंत्र रूप से और एलोपैथी के साथ किए गए अपने  प्रयोगों के अच्छे परिणामों  की जानकारी दी। आठ दिसंबर को शुरू हुए चार दिन के इस सम्मेलन और आरोग्य प्रदर्शनी का  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आज शाम समापन करेंगे । आयुष मंत्रालय और विज्ञान भारती द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में 35  देशों के 400 से अधिक  प्रतिनिधियों सहित करीब पांच हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

   इस सत्र को संबोधित करते हुए अपोलो हॉस्पिटल्स समूह की कंपनी आयुर्वेद हॉस्पिटल्स के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ राजीव वासुदेवन ने ‘ग्लोबल वेलनेस इंस्टिट्यूट’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वेलनेस का वैश्विक बाजार 2020 में 4.4 हज़ार अरब डालर था जो 2025 तक 7 हजार अरब  डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें आधुनिक चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि  परंपरागत पद्धतियों से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए  दूसरे देशों की यात्रा पर जाने वालों का बाजार शामिल है।

श्री वासुदेवन ने भारत सरकार की ‘हील इन इंडिया’ पहल और स्वास्थ्य लाभ के लिए  आने वाले विदेशियों के लिए वीजा और परामर्श सुविधाएं देने वाले वन-स्टॉप डिजिटल पोर्टल जैसी पहल की सराहना करते हुए कहा कि   कहा कि  ‘आयुर्वेद वैश्विक वेलनेस बाजार में  भारत के लिए ब्रह्मास्त्र हो सकता है ।’ पर उन्होंने आगाह किया कि ‘आयुर्वेद को केवल मसाज बना देना इसके भविष्य की दृष्टि से बड़ी भूल होगी।’

  इस सत्र को जर्मनी के एवेंजलिश स्टिफटुंग ऑगस्टा के साथ काम करने वाली न्यूरो रोग विशेषज्ञ डॉ सांद्रा स्जिमास्की , महादेवबाग कार्डियक केयर क्लिनिक्स एंड हास्पिटल्स के डॉ रोहित एम साने और  विख्यात लीवर रोग चिकित्सक एवं और दिल्ली के आईएलबीएस संस्थान के प्रमुख डॉ एसके सरीन ने भी संबोधित किया। डा सरीन और अन्य वक्ताओं ने इलाज और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ में आयुर्वेद के प्रभाव को स्वीकार करते हुए कहा कि आयुर्वेद तथा आधुनिक चिमत्सा में कोई टकराव नहीं है।

 डॉ सरीन ने सत्र को आल लाइन संबोधित करते हुए कहा कि एलोपैथी-और आयुर्वेद का हाइब्रिड (मिलाजुला या संकर) उपचार दुनिया के लिए समय की जरूरत है और भारत को  ‘हाइ-ब्रिड चिकत्साक’ तैयार करने का बीड़ा उठाना चाहिए। इसके लिए डॉ सरीन ने एमबीबीएस कार्यक्रम में चार वर्ष आधुनिक चिकित्सा और छह माह आयुर्वेद की पढ़ाई कराने पर एक साल की इंटर्नशिप में दो माह आयुर्वेदिक क्षेत्र में  बताए जाने की व्यवस्था की सिफारिश की।डॉक्टर सरीन ने कहा कि भारत में 30% लोगों फैटी लीवर की शिकायत है और हम इसके प्रबंध में आयुर्वेद और आहार चिकित्सा प्रयोग कर रहे हैं।

  डा सांद्रा ने अपने संस्थान में भारत के आयुष मंत्रालय के सहयोग से किए जाने वाले प्रयोग में पार्किंसन रोगियों पर आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के साथ आयुर्वेद और निरामिष आहार के लाभदायक प्रभावों का ब्योरा दिया और कहा कि ‘हील-इन-इंडिया’ में उनके संस्थान के मॉडल को शामिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा ‘ बीमारी के हर चरण-प्रारंभिक , उग्र और चिकित्सा के बाद स्वास्थ्य लाभ के चरण में लाभदायक साबित हुई है।’ उन्होंने मिली जुली चिकित्सा के लिए अस्पतालों में इसका समग्र प्रबंधन करने की जरूरत पर बल दिया।

  माधवबाग के डा रोहित साने ने 275  हृदय रोगियों के पर आहार, पंचकर्म , आयुर्वेद और डिजिटल तौर पर निगरानी के साथ योग एवं व्यायाम पर आधारित उपचार के अपने नतीजों का ब्योरा देते हुए कहा कि तीन माह से 36 माह तक की निगरानी में इन मरीजों की आर्टरी (धमनी में अवरोध) तुलनात्मक रूप से अधिक घटा और उन्हें पुन: एंजियोप्लास्टी, अस्पताल में भर्ती और मृत्यु का अनुपात अमेरिका में आधुनिक चिकित्सा से उपचारित मरीजों की तुलना में कम रहा।  

  श्री वासुदेवन ने कहा कि अंग्रेजी के हील शब्द का ‘अर्थ है मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा को पुन: पूरी तरह स्वस्थ कर उनकी पूर्णता में लाना है।’ उन्होंने कहा कि ‘मेडिकल टूरीज्म’ (उपचार के लिए विदेश जाना) और मेडिकल वैल्यू ट्रवेल (स्वास्थ्य के लिए समय और संसाधन के अनुकूल यात्रा ) करने में अंतर है।    

   उन्होंने कहा कि विदेशी मरीज स्वास्थ्य लाभ के लिए दूसरे देश में जाने से पहले यह देखता है कि उसका किसी देश में जाने से कितना समय और साधन खर्च हो रहा है और उसका लाभ क्या है । इसी लिए भारत में समग्र स्वास्थ्य सेवा को पारदर्शी और जवाबदेह रखने की जरूरत है। 

  एक अध्ययन का हवाला देते हुए श्री वासुदेवन ने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए  भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों में अधिकतर केरल जाते हैं क्यों कि वह आयुर्वेद का बड़ा केंद्र है। केरल में  सालाना यात्रियों की यह संख्या सालाना 12 लाख है और वाणिज्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार इससे होने वाली सालाना आय 10 हजार करोड़ रुपये है।

   उन्होंने कहा कि चिकित्सा के लिए आने वाले ज्यादातर विदेशी मरीज ऑपरेशन और अंग प्रत्यारोपण , आंख, बच्चों के इलाज और कैंसर चिकित्सा के लिए आते है। आयुर्वेदिक चिकित्सा का भी इनमें पांचवां स्थान है। पर भारत में आने वाले ऐसे लोगों में ज्यादा तर पड़ोसी भारत के पड़ोसी देशों और अफगानिस्तान , तुर्कमेनिस्तान और अफ्रीकी देशों के लोग होते हैं जिनकी आमदनी तुलनात्मक रूप से कम है।

  उन्होंने रोगों की रोकथाम , प्रारंभिक चर और आधुनिक उपचार के बाद स्वास्थ्य लाभ के चरण में आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा की शक्ति का उपयोग कर ‘वेलनेस ’ सेवाओं के बढ़ते बाजार का लाभ उठाने का सुझाव दिया।

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