आयुर्वेद के सिद्धांतों के साथ शास्त्रीय रागों के एकीकरण से रजोनिवृत्त महिलाओं को लाभ होता है: डब्ल्यूएसी

• शोधकर्ता का कहना है कि रसायन प्रक्रियाओं के साथ, स्वनिर्धारित संगीत,मन की स्थिति में सुधार लाता है
Panaji / December 10, 2022

पणजी, 10 दिसंबर:यहां चल रहे एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलन बोलते हुए एक शोधकर्ता ने कहा कि पारंपरिक भारतीय संगीत में आयुर्वेद सिद्धांतों के साथ एकीकरण किए जाने से रजोनिवृत्त महिलाओं को चिकित्सीय उपयोगिता प्रदान करके की अपार संभावनाएं हैं।

जामनगर स्थित पीएचडी विद्वान अनघा शिवनंदन ने कल समाप्त होने वाली चार दिवसीय विश्व आयुर्वेद कांग्रेस (डब्ल्यूएसी) में बताया कि जांची-परखी, प्रमाणित रसायन (सार-तत्व) प्रक्रियाओं के साथ स्वनिर्धारित (कस्टमाइज्ड) संगीत, उन मध्यम वय की महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है जिनकामाहवारी की अवस्था खत्म होने के करीब होती है।

गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के बाद, अनघा ने अपने अध्ययन में राग मध्यमावती को स्वरों के 20 मिनट के पैकेज के रूप में चार वाद्य यंत्रों के साथ प्रयोग किया, जिसने रजोनिवृत्त महिलाओं के मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक पहलू में उल्लेखनीय सुधार का आकलन किया। शोधकर्ता ने विश्व आयुर्वेद महासंघ द्वारा आयोजित 9वीं डब्ल्यूएसी में ‘इंटीग्रशन विद इंडियन ट्रेडीशनल साइंसेस’ ('भारतीय पारंपरिक विज्ञान के साथ एकीकरण')पर हुए एक सत्र में बोलते हुए कहा, "इसकी स्वीकार्यता, व्यवहार्यता और प्रभाव कुशलता के संदर्भ में सकारात्मक परिणामों के साथ संगीत को शामिल करने की सराहना की गई।"

अनघा ने बताया कि आरोह और अवरोह के सरगम के साथ पांच स्वरों के साथ कर्नाटक राग, आयुर्वेद ग्रंथों में वात पित्तहार के सिद्धांतों के अनुरूप प्रस्तुत किया गया था। पुरुष और महिला स्वरों के बोल के बिना प्रस्तुत किए गए संगीत में बांसुरी और तबला के अलावा वीणा और तानपुरा के वाद्य यंत्रों के साथ अन्य तार वाद्य यंत्र भी प्रयोग किए गए थे।अनघा ने अपनी थीसिस इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग एंड रिसर्च को दी है।

उन्होंने कहा कि संगीत, जोप्रति मिनट 70 ताल की गति के साथ तीन-चार-लय पर आधारित है, सुनने वालों को उत्तेजित करता है, रजोनिवृत्ति सिंड्रोम से उत्पन्न तनाव को कम करता है। उनका पेपर जिसका शीर्षक है 'स्कोप ऑफ इंडियन क्लासिकल एज ए कंप्लीमेंट्री इंटरनेंशन इन आयुर्वेदिक मैनेजमेंट ऑफ मेनोपॉज़ल सिंड्रोम’ के अनुसार संगीत की प्रतिध्वनि ऊतकों और अंगों की प्राकृतिक आवृत्तियों के साथ मेल खाती है, अंडाशय को आराम देती है।पंचकोणीय मध्यमावती में मदमत सारंग हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के समकक्ष है।

एक महीने तक रोज सुनाए जाने वाली यह संगीत रचना आधारभूत ग्रंथों के अनुसार की गई थी, जिसमें व्यक्ति के सौंदर्य को समझने की भावना के साथ धुनों और लय के संबंध के अलावा दोष और रस के साथ स्वर के संबंधों के बारे में भी खोजा गया था। "मैंने रागों के 'समय सिद्धांत' के अनुसार भी काम किया," अनघा ने कहा। "बीमारी की वजह से उत्पन्न सीमाओं और चुनौतियों के साथ, महामारी की अवधि के दौरान परीक्षण किए गए थे।"

सत्र में कुल सात प्रस्तुतकर्ता थे। उनमें से,‘ सद्यो वामन कर्म एज एनएक्यूट रेमीडियल मेशर इन डिफरेंट हेल्थ कंडीशंस ऑफ चिल्ड्रन’('बच्चों की विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों में एक तीव्र उपचारात्मक उपाय के रूप में सद्यो वामन कर्म')पर प्रोफेसर दोरनाला स्नेहलता की प्रेजेंटेशन को तीन सदस्यीय पैनल द्वारा सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। पांच अन्य वक्ताओं के नाम हैं— जे. आथिथ्या, अमिला निशानी पियासिंघे, अमृतावल्ली जी.वी., अंजू अरविंद और दीपाली मुकेश नंदवे।

 

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