जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को मृदा योजक में परिवर्तित करने की सीएसआईआर-एनआईआईएसटी प्रौद्योगिकी का एम्स में मान्यकरण किया जाएगा - प्रोटाइप रिग स्थापित किया गया

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने एम्स नई दिल्ली में प्रौद्योगिकी के अनुसंधान-आधारित पॉइंट-ऑफ-केयर सत्यापन का शुभारंभ किया
New Delhi / February 10, 2025

नई दिल्ली,10 फरवरी: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक स्वचालित बायोमेडिकल अपशिष्ट रूपांतरण रिग का शुभारंभ किया, जो रक्त, मूत्र, थूक और प्रयोगशाला के डिस्पोजेबल जैसे रोगजनक बायोमेडिकल कचरे को कीटाणुरहित कर उन्हें मिट्टी में मिलाने वाले पदार्थों में बदल सकता है।

इस रिग का नाम "सृजनम" रखा गया है, जिसे राष्ट्रीय अंतःविषय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-एनआईआईएसटी), तिरुवनंतपुरम द्वारा विकसित किया गया है। यह महंगे और ऊर्जा-गहन भस्मक की जगह लेता है, साथ ही इन दुर्गंधयुक्त विषाक्त कचरे को सुगंध भी प्रदान करता है।

डॉ. सिंह ने एम्स परिसर में औपचारिक रूप से रिग का उद्घाटन करते हुए कहा कि देश में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (बायोमेडिकल वेस्ट) की मात्रा लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2021-22 में प्रतिदिन 700 टन जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न हो रहा था, जो एक साल के भीतर बढ़कर 743 टन प्रतिदिन हो गया।

इस संदर्भ में, उन्होंने डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत के अस्पतालों में प्रति बेड प्रतिदिन 0.5-0.75 किलोग्राम जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत या उससे अधिक संक्रामक होता है और इसका सबसे अधिक जोखिम नर्सिंग स्टाफ को होता है।

डॉ. सिंह ने कहा कि वर्तमान सरकार के सभी निर्णय प्रौद्योगिकी-आधारित हैं। यह सरकार के पहले 100-दिनों के कार्यक्रम से स्पष्ट हो जाता है।

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की प्रमुख आर्थिक शक्तियों में से एक बनने की ओर अग्रसर है। ऐसे में, अपशिष्ट निपटान जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं के लिए एक प्रभावी प्रणाली की आवश्यकता है।

 

इस समारोह में श्री तन्मय कुमार I A S, सचिव, MoEFCC; डॉ. (श्रीमती) एन. कलैसेल्वी, सचिव, DSIR एवं महानिदेशक, CSIR; डॉ. राजीव बहल, सचिव, DHR एवं महानिदेशक, ICMR; डॉ. वी. के. पॉल, सदस्य, नीति आयोग; और डॉ. एम. श्रीनिवास, निदेशक, एम्स नई दिल्ली और डॉ. सी आनंदरामकृष्णन, निदेशक, सीएसआईआर-एनआईआईएसटी उपस्थित थे।

 

डॉ. कलैसेल्वी ने कहा कि यह सरकार के "वेस्ट टू वेल्थ" मिशन के तहत चल रहे नवीनतम परियोजनाओं में से एक है। यह उपकरण 50 किलोग्राम जैव-अपशिष्ट को मात्र 20 मिनट में जैव-उर्वरक में परिवर्तित कर सकता है, वह भी बिना जल, वायु और मिट्टी को किसी प्रकार की हानि पहुंचाए।

सीएसआईआर-एनआईआईएसटी के निदेशक डॉ. सी आनंदरामकृष्णन ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

प्रारंभिक चरण में प्रतिदिन 400 किलोग्राम क्षमता वाला प्रोटोटाइप उपकरण प्रतिदिन 10 किलोग्राम सड़ सकने वाले मेडिकल कचरे का निपटान कर सकता है। एक बार मान्य होने के बाद, सक्षम अधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद यह तकनीक पूर्ण पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए तैयार हो जाएगी।

डॉ. सी. आनंदरामकृष्णन ने कहा, "उपचारित अपशिष्ट को न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ मूल्यवर्धित मिट्टी के योजक में बदलने की अपनी क्षमता के साथ, हमारी तकनीक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए एक सुरक्षित समाधान प्रदान करती है, फैलने और व्यावसायिक जोखिम के जोखिम से बचाती है, और संक्रामक रोगाणुओं के अनियंत्रित प्रसार को रोकने में सहायता करती है।" 

 

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