पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश 'असंगत': माधव गाडगिल प्रख्यात पारिस्थितिकीविद् के अनुसार वन विभाग के बजाय स्थानीय समुदायों को संरक्षण गतिविधियों का नेतृत्व करना चाहिए

पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश 'असंगत': माधव गाडगिल प्रख्यात पारिस्थितिकीविद् के अनुसार वन विभाग के बजाय स्थानीय समुदायों को संरक्षण गतिविधियों का नेतृत्व करना चाहिए
Trivandrum / June 23, 2022

तिरुवनंतपुरम, 23 जून: प्रख्यात पारिस्थितिकीविद् माधव गाडगिल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का हाल का निर्देश 'असंगत' और 'झूठी धारणाओं पर आधारित' है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि देश के सभी संरक्षित क्षेत्रों, वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास न्यूनतम एक किलोमीटर पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र (ईएसजेड) को अनिवार्य किया जाए। श्री गाडगिल ने मनोरमा ईयर बुक ऑनलाइन को बताया कि देश में प्रकृति संरक्षण की पूरी व्यवस्था त्रुटिपूर्ण है, यह देखते हुए न्यायिक घोषणा में मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था।

श्री गाडगिल ने पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल रिपोर्ट (जिसे गाडगिल रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है) का हवाला देते हुए कहा कि पारिस्थितिक संवेदनशीलता, अब झगड़े का कारण है, अौर इसे वस्तुनिष्ठ अौर मामले के आधार पर परिभाषित किया जाना चाहिए।

श्री गाडगिल ने कहा कि “क्षेत्रों को उच्च, मध्यम और निम्न संवेदनशीलता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसी के अनुसार सुरक्षा दी जानी चाहिए। इस संदर्भ में किसी क्षेत्र की प्राकृतिक विशेषताओं, ऊंचाई, वर्षा, प्राकृतिक आवास, वनस्पति और अन्य मानदंडों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से, शहरी प्रकृति संरक्षणवर्ग को वास्तविकताओं का कोई अंदाजा नहीं है।”

सबसे खतरनाक आवासों और जैव विविधता के तत्वों को समग्र रूप से देखने के लिए विचारणीय मुद्दा बनाते हुए, प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य, श्री गाडगिल ने कहा कि इस समय पूरी दुनिया मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता की मांग कर रही है।

श्री गाडगिल ने कहा कि “इस समय देश की नदियों, तालाबों और आर्द्रभूमियों को संरक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता है। इसके बाद खुले, शुष्क क्षेत्र और झाड़ीदार वनों का संरक्षण किया जाना चाहिए। सदाबहार और पर्णपाती वन अपेक्षाकृत कम खतरे में हैं, और उन्हें सुरक्षा की बहुत कम आवश्यकता है।”

पारिस्थितिक विज्ञान केंद्र के संस्थापक श्री गाडगिल ने कहा कि यह स्थिति त्रुटिपूर्ण है कि संरक्षण किसका किया जाना चाहिए, यहां तक कि सुरक्षा करने के लिए एजेंसी (वन विभाग) भी अनुचित है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस धारणा पर आधारित है कि संरक्षित क्षेत्र, विशेष रूप से वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और आरक्षित वन, देश की प्राकृतिक, जैविक और पारिस्थितिक आवास विविधता की रक्षा करेंगे और वन विभाग उपयुक्त एजेंसी है जो सुरक्षा का प्रभारी है। श्री गाडगिल ने कहा कि "मुझे लगता है कि ये दोनों ही बहुत त्रुटिपूर्ण धारणाएं हैं।"

प्रकृति में भागीदारी के लिए संरक्षण उपायों की आवश्यकता को दोहराते हुए, श्री गाडगिल ने कहा कि वन विभाग को नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों को इस तरह की गतिविधियों में सबसे आगे होना चाहिए।

जैविक विविधता अधिनियम, 2002 (बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी एक्ट), स्थानीय समुदायों को यह सुझाव देने का ढांचा प्रदान करता है कि स्थानीय निकायों की मदद से उनकी जैव विविधता का प्रबंधन कैसे किया जाए। श्री गाडगिल के अनुसार स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियां भी होनी चाहिए।

श्री गाडगिल ने कहा कि वास्तविक खतरों का जायजा लेने की भी आवश्यकता है जो विकास की एक पूरी श्रृंखला है। इसकी वजह से न केवल जल स्रोत बाधित हो रहे हैं, वरन व्यापक प्रदूषण भी फैल रहा है जो भारत की नदियों को प्रभावित कर रहा है।

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