सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए वैकल्पिक तकनीक को मान्य करने के लिए एम्स के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए
New Delhi / June 25, 2024
नई दिल्ली, 25 जून: सीएसआईआर-राष्ट्रीय अंतःविषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (नेशनल इंस्टीच्यूट फॉर इंटरडिसीप्लेनरी साइंस एंड टेक्नॉलोजी-सीएसआईआर-एनआईआईएसटी), तिरुवनंतपुरम ने रोगजनक बायोमेडिकल कचरे के निपटान में वर्तमान पद्धतियों के लिए एक टिकाऊ और ऊर्जा-दक्षता विकल्प प्रदान करने वाली तकनीक को मान्य करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।
कल यहां इंडिया हैबिटेट सेंटर में सीएसआईआर के ‘वन वीक वन थीम’ (ओडब्ल्यूओटी) कार्यक्रम के उद्घाटन के अवसर पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने एक दोहरी कीटाणुशोधन-ठोसीकरण प्रणाली विकसित की है जो रक्त, मूत्र, लार, थूक और प्रयोगशाला के डिस्पोजेबल जैसे सड़ने वाले रोगजनक बायोमेडिकल कचरे को स्वचालित रूप से कीटाणुरहित और अवरुद्ध कर सकती है, साथ ही दुर्गंध वाले बायोमेडिकल कचरे को एक अच्छी प्राकृतिक सुगंध प्रदान कर सकती है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक घटक प्रयोगशाला सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने तिरुवनंतपुरम के पप्पनमकोड में अपनी प्रयोगशाला में यह तकनीक विकसित की है।
इस तकनीक में वैश्विक जैव चिकित्सा क्षेत्र में दूरगामी परिणाम प्राप्त होने की संभावना है, क्योंकि यह ऊर्जा-गहन भस्मीकरण सहित पारंपरिक तकनीकों की सीमाओं से निपट सकती है। इसे एम्स में पायलट-स्केल इंस्टॉलेशन और साथ में अनुसंधान और विकास के माध्यम से मान्य किया जाएगा।
प्रस्तावित अध्ययन की शुरुआत से पहले विनिर्देशों को अंतिम रूप देने के लिए दोनों संस्थानों के बीच इसकी तकनीक पर विचार-विमर्श करने के लिए एक बैठक होगी।
विकसित तकनीक की रोगाणुरोधी क्रिया और उपचारित सामग्री की गैर-विषाक्त प्रकृति के लिए विशेषज्ञ तृतीय-पक्षों द्वारा भी पुष्टि की गई है। मृदा अध्ययनों ने पुष्टि की है कि उपचारित जैव चिकित्सा अपशिष्ट वर्मी कम्पोस्ट जैसे जैविक उर्वरकों से बेहतर है।
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी के निदेशक डॉ. सी. आनंदधर्मकृष्णन और एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास ने केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और सीएसआईआर के उपाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान किया।
डीएसआईआर के सचिव और सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. एन कलैसेल्वी और सीएसआईआर-सीबीआरआई के निदेशक प्रोफेसर आर. प्रदीप कुमार भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैज्ञानिकों को यह देखने की जरूरत है कि वे सभी संसाधन जो अभी तक अनदेखे रह गए हैं, उनका मूल्यवर्धन कैसे किया जा सकता है, ताकि भारत शीर्ष स्थान पर पहुंच सके।
डॉ. सिंह ने कहा, "वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय और समुद्री संसाधनों का पता लगाने की जरूरत है और हमारे पास कम खोजे गए संसाधनों का और अधिक पता लगाने का अवसर है। इससे मूल्यवर्धन होगा, क्योंकि हमारे पास पहले से ही पर्याप्त है।"
डॉ. कलैसेल्वी ने कहा कि ओडब्ल्यूओटी एक ऐसा मंच है, जहां से सीएसआईआर पूरे देश को सात विषयों पर आधारित नवीन विचारों का प्रदर्शन कर सकता है।
डॉ. कलैसेल्वी ने कहा, "ये विचार हमें हितधारकों का विश्वास जीतने में मदद करेंगे। हम पूरी दुनिया को दिखाएंगे कि सीएसआईआर सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी प्रदाता होगा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में देश को वैश्विक पटल पर अग्रणी राजधानी बने रहने में मदद करेगा।"
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी के निदेशक डॉ. सी. आनंदधर्मकृष्णन ने कहा कि सीएसआईआर-एनआईआईएसटी जैव चिकित्सा अपशिष्ट और पर्यावरण सुरक्षा सहित विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। उन्होंने कहा, "सीएसआईआर-एनआईआईएसटी में वैश्विक स्थिरता हमारी प्रमुख चिंता है। रोगजनक जैव चिकित्सा अपशिष्ट को मूल्यवर्धित मृदा योजक में बदलने के लिए हमने जो प्रौद्योगिकी विकसित की है, वह 'अपशिष्ट से धन' (वेस्ट टू वैल्थ कांसेप्ट) अवधारणा का एक आदर्श उदाहरण है।"
डॉ. आनंदधर्मकृष्णन ने कहा कि सीएसआईआर-एनआईआईएसटी सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व वाली हर प्रौद्योगिकी में स्थिरता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह वर्तमान प्रौद्योगिकी के माध्यम से रोगजनक जैव चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिए एक अभिनव समाधान को भी लक्षित करता है।
जैव चिकित्सा अपशिष्ट, जिसमें संभावित रूप से संक्रामक और रोगजनक सामग्री शामिल है, उचित प्रबंधन और निपटान के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड-CPCB) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रतिदिन लगभग 774 टन बायोमेडिकल अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने रोगजनक बायोमेडिकल अपशिष्ट उपचार के किसी भी चरण के दौरान न्यूनतम मानव जोखिम सुनिश्चित करने के लिए एक स्वचालित और एकीकृत उपकरण भी विकसित किया है। पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में भारत मंडपम में सीएसआईआरद द्वारा आयोजित पिछले एक्सपो में उपकरण प्रदर्शित किए गए थे।
इस अवसर पर, सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने कृषि अपशिष्ट (कैक्टस) से प्लांट लेदर के विकल्प बनाने की तकनीक भी अहमदाबाद की स्टार्टअप वेगनविस्टा कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की। यह तकनीक कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने और शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कैक्टस की खेती और राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों के लिए मूल्य संवर्धन के लिए बंजर भूमि का उपयोग सुनिश्चित करती है।
इसके अलावा, पेपर कोटिंग के लिए प्लांट ऑयल सोर्स बायो-रेजिन बनाने की सीएसआईआर-एनआईआईएसटी की तकनीक भी संचित गुलाटी और उनकी टीम द्वारा संचालित पानीपत, हरियाणा के एक स्टार्टअप को कार्यक्रम में हस्तांतरित की गई।
वनस्पति तेलों से बायो-रेजिन कोटिंग पर विकसित प्रक्रिया ज्ञान, कागज और अन्य सेल्युलोसिक उत्पादों पर एकल उपयोग प्लास्टिक लाइनर की जगह ले सकता है, जिससे जैवनिम्नीकरणीयता (बायोग्रेडेबिलिटी) और पुनः लुगदीकरण क्षमता वाली पर्यावरण अनुकूल, हरित और टिकाऊ पैकेजिंग सामग्री तैयार की जा सकती है।