दिल्ली में प्रदर्शित इतालवी फ्रांसेस्का के नवीनतम चित्रों में गोवा, लद्दाख अमूर्त रूप में दिखते हैं

New Delhi / February 24, 2024

नई दिल्ली, 24 फरवरी: गोधूलि के समय गोवा के आकर्षक और उष्णकटिबंधीय समुद्र तटों पर चलने वाली सुखद हवा फ्रांसेस्का अमेलिया ग्रिमाल्डी की संवेदनशीलता को महीन रेशम की एक पतले धागे की तरह खींचती है, जो इतालवी चित्रकार में एक सहज रचनात्मकता पैदा करती है। इसी ने उन्हें एक विशिष्ट कल्पना के साथ कैनवास पर अपना ब्रश चलाने के लिए प्रेरित किया, बेशक उन छवियों से उनके भूमध्यसागरीय देश के समुद्री तट पर उनके प्रारंभिक वर्षों की यादें ताजा हो गईं।

भारतीय राजधानी में चल रही इस प्रदर्शनीमें फ्रांसेस्काकी 32 चुनिंदा पेंटिंग्स में एक 'गोवा बीच' भी शामिल है। 'मेटामोर्फोसिस' नामक पांच दिनों तक चलने वाले इस आयोजन मेंइस चित्रकार के कुछ नवीनतम मिक्स-मीडिया कृतियों को प्रदर्शित किया गया है। इस प्रदर्शिनी को एलटीसी, बीकानेर हाउस में आगामी मंगलवार तक देखा जा सकेगा।

विद्वान-लेखक उमा नायर द्वारा क्यूरेटेड 23 से 27फरवरी तक चलने वाले इस शो का उद्घाटन कल शाम भारत में इतालवी राजदूत विन्सेन्ज़ो डी लुका और नीमराना होटल्स के संस्थापक कला इतिहासकार अमन नाथने किया। यह शो सुबह 11बजे से शाम 7बजे तक खुला रहेगा।

फ्रांसेस्का, जो सार्डिनिया के साथ-साथ सिसिली में पली-बढ़ीं हैं और पिछले दशक के अंत तक जो लैंडस्केप बनाती रही हैं, कहती हैं, “मेरे लिए समुद्र एक रंगीन, एक लय में उठने वाली सिम्फनी की तरह है। यह पुरानी धुनों के माध्यम से संगति के तारतम्य को दर्शाता है।''

मुख्यतः नीला 'गोवा बीच' (2023) नामक पेंटिंग,जो 122 से.मी x 152.5 से.मी आकार के कैनवास पर बनी है, एक प्रभाववादी (कलाकार की भावना तथा कल्पना की अभिव्यक्ति कर सकतने में सक्षम)लैंडस्केप (परिदृश्य) है जो इस बात को दर्शाती है कि कलाकार एकांत पसंद है। दक्षिण-पश्चिम भारत में समुद्र तटीय पर्यटन स्थल वह स्थान है जहां फ्रांसेस्का "बार-बार" आती हैं। वे उनकी कृतियों को एक विचार प्रदान करते हैं, जो माशा आर्ट द्वारा आयोजित 'मेटामोर्फोसिस' में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

क्यूरेटर उमा नायर बताती हैं कि फ्रांसेस्का का'रंगों का पतली परत के रूप में इस्तेमाल’उन्हें परिवेश को कैनवास पर उतारने में सक्षम बनाती है। वह कहती हैं, “हालांकिकलाकार के लिएउनका यह गुण लक्ष्य नहीं है। यह मूड बनाने के लिए अपनाया जाने वाला मनमोहक रंगों और बारीकियों का लगभग एक गौण-उत्पाद है। उनकी यह महारत उनके अमूर्त अध्ययन 'अंडर द सी' और 'फॉर वॉर' नामक डिप्टिकमें स्पष्ट है।''

रंगों में सामंजस्य का संबंध इस विजुअल आर्टिस्ट के संगीत के प्रति प्रेम से भी जुड़ा है। फ्रांसेस्का, जिनके पिता एक वायलिन और पियानोवादक थे, बीते दिनों को याद करते हुए कहती हैं, "मैं बचपन से ही शास्त्रीय संगीतकारों की ओर आकर्षित थी।”अब पेंटिंग बनाते हुए मैं उन संगीतकारों को सुनती हूं।" वह कुछ जैज कलाप्रवीण लोगों के अलावा सर्गेई राचमानिनोव, प्योत्र इलिच त्चिकोवस्की और डब्ल्यू.ए. मोजार्ट के नाम दोहराते हुए खुलासा करती है।

अपने प्रारंभिक वर्ष समुद्र से घिरे एक द्वीप पर बिताने के बाद, फ्रांसेस्का के प्रारंभिक कलात्मक चित्र मुख्य रूप से एक आलंकारिक चरित्र वाले थे। वह बताती हैं, “रेत के टीलों के साथ-साथ झाड़ियों के हरेपन और लालिमा के साथसमुद्र के दृश्यों का नीलापन भी व्याप्त था। जुनिपर हवा से झुक गए और, यही नहीं, लंबी परछाइयों ने शाम के आगमन की घोषणा की। ”

5000से अधिक समकालीन चित्रों और मूर्तियों के पोर्टफोलियो वाली एक प्रमुख कला निवेश फर्म माशा का कहना है कि 'मेटामोर्फोसिस' संग्रह करने वालों,  कला प्रेमियों और पारखी लोगों के लिए किसी अनूठे उपहार से कम नहीं है। 2018में स्थापित इस गैलरी के मैनेजिंग पार्टनर समर्थ माथुर कहते हैं, "हम उत्कृष्ट और गुणवत्तापूर्ण क्यूरेशन की चाहमें विविध दृश्य अभिव्यक्तियों को खोजते हैं।"

फ्रांसेस्का एक प्रशिक्षित भूविज्ञानी हैं, और पोरडेनोन शहर में उनकी पहली एकल प्रदर्शनी 1987 में लगी थी। विज्ञान विषय में डिग्री हासिल करने के अलावा, उनके अंदर कला इतिहास और प्रकृति के प्रति एक जुनून था। इनसे उन्हें आलंकारिक (फिगेरेटिव) चित्र करने की प्रेरणा मिली। 1980 के दशक के उत्तरार्ध में, फ्रांसेस्का ने फ्लोरेंस में ‘एकेडेमिया रियासी’ में भाग लिया और आभूषण डिजाइन के अलावा अपनी ड्राइंग और पेंटिंग तकनीकों की क्षमता को और परिष्कृत तथा निखारा। जबकि वह फिगेरेटिवआर्ट में कम गाढ़े और ऑयल पेस्टल के अलावा ऑयल, ऐक्रेलिक और वॉटर कलर्स का उपयोग करके मिक्स-मीडिया तकनीकों को पसंद करती हैं, 'मेटामोर्फोसिस' अमूर्त कार्यों में उनकी उत्कृष्टता को दर्शाता है।

'मेटामोर्फोसिस' में नीले रंग में उनकी यात्रा के भीतर फ्रांसेस्का का 'लद्दाक पर्वत' है, जो सुबह की धुंध के बीच भारत के सबसे ऊंचे पठार की जमी हुई झीलों पर सुबह की रोशनी बिखेरता हुआ एक डिप्टिकहै। पिछले चार वर्षों में बनाई गई सीरीज में नीले रंग के अलावा अन्य रंगों के साथ बनाई पेंटिंग्स की एक व्यापक सीरीज भी शामिल है। उमा कहती हैं, ''धूप के पीले और हरे रंग के अलावा अन्य मधुर रंगों में प्रतिध्वनि गूंजित होती है।रंगों का चयन और संयोजन जैसे अन्य घटक बाद में आते हैं।"

हाल ही में, उन्होंने अमूर्तता की नई सीमाओं की खोज की है। यह विकास समकालीन अभिव्यक्तिवादी चित्रकला के क्षेत्र में उनके व्यक्तिगत शोध का परिणाम है, जो यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में की गई उनकी व्यापक यात्राओं से प्रभावित है। उनके अमूर्त चित्रों (एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग्स) में कलाकार की आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति को छूने की चाह के कारण रूप, खाली स्थानों और चमकीले रंगों का वर्चस्व देखा जाता है। इन तत्वों को बड़ी गहरी लकीरों के विरूपण और अतिशयोक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो कभी-कभी एक ऐसी भाषा के साथ टूटी और लहरदार होती हैं, जो एक साथ ड्राइंगसंश्लेषण (कांट्रेक्टेड ड्राइंग सिंथेसिस)और अद्भुत रंगदार गुणवत्ता को नियोजित करती है।

जैसे ही वह चित्र बनाना शुरू करती हैं, फ्रांसेस्का सूरज की रोशनी वाली घाटियों, टेढ़े-मेढ़े रास्तों और लुभावने परिदृश्यों की भूलभुलैया में "खुद को खो देती हैं।" 'फॉर वॉर' और 'द साउंड' की बात करें तो वे अमूर्त अभिव्यक्तिवाद में डूबे कैनवास की एक जुगलबंदी हैं। पहला एक विरोधाभासी मूड रखते हुए गहरे सरसों-पीले रंग के साथ ध्वनित होता है। उमा कहती हैं, ''इतिहास को अपने पेंटिग्स में परत-दर-परत उतारना फ्रांसेस्का के काम की पहचान है।''

कुल मिलाकर, 'मेटामोर्फोसिस' समकालीन शहरी दुनिया में एक महिला कलाकार के रूप में फ्रांसेस्का की सोच और विचार पर आधारित है।

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