धर्मनिरपेक्षता अब सत्तारुढ़उन लोगों के लिए अपमानजनक हो गई है: सोनिया

Trivandrum / January 2, 2024

तिरुवनंतपुरम, 2 जनवरी: धर्मनिरपेक्षता को भारत के लोकतंत्र का मूलभूत स्तंभ बताते हुए कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल अब सत्ता में बैठे लोगों द्वारा 'अपमानजनक' रूप में किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है।

"वे कहते हैं कि वे 'लोकतंत्र' के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन साथ ही, वे इसके सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए सुरक्षा उपायों को शक्तिहीन बनाते हैं। श्रीमती गांधी ने मनोरमा ईयरबुक 2024के लिए लिखे लेख में लिखा है, "हमारे देश को सद्भाव की ओर ले जाने वाली रेल की पटरियां क्षतिग्रस्त हो रही हैं और इसके परिणाम पहले से ही समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण के रूप में देखे जा रहे हैं।"

लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता, एक पटरी पर दो रेलों की तरह आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, जो मौजूदा सरकार का ध्यान सामंजस्यपूर्ण समाज के आदर्श की ओर दिलाते हैं। उन्होंने कहा, “हम सभी इन शब्दों से परिचित हैं, जो हमें बहस, भाषणों, नागरिक शास्त्र की पाठ्यपुस्तकों और संविधान की प्रस्तावना में मिलते हैं। इन शब्दों से परिचित होने के बावजूद, इन अवधारणाओं के पीछे के गहरे अर्थ अकसर अस्पष्ट होते हैं। इस शब्दावली की स्पष्ट समझ प्रत्येक नागरिक को भारत के इतिहास, वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य के मार्ग को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी।”

श्रीमती गांधी ने बताया कि धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या कई तरीकों से की जा सकती है, लेकिन भारत के लिए सबसे प्रासंगिक अर्थ वह है जो महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध उक्ति 'सर्व धर्म सम भाव' में निर्धारित किया था। “गांधीजी सभी धर्मों की आवश्यक एकता को समझते थे। जवाहरलाल नेहरू भारत के बहु-धार्मिक समाज होने के प्रति गहराई से सचेत थे, इसलिए उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए लगातार प्रयास किया।''

श्रीमती गांधी ने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. बी आर आंबेडकर के नेतृत्व में भारत के संविधान निर्माताओं ने इस विचार को विकसित किया और सरकार पर लागू किया, जिससे अद्वितीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का निर्माण हुआ। “सरकार सभी की धार्मिक मान्यताओं की रक्षा करती है। इसमें अल्पसंख्यकों के कल्याण की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान हैं। भारतीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का मार्गदर्शक सिद्धांत हमेशा हमारे समाज के सभी विविध समूहों के बीच सद्भाव और समृद्धि को बढ़ावा देना है।"

बीस वर्षों (1998 से 2017 तक और 2019 से 2022 तक) तक सबसे लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रहींश्रीमती गांधीने कहा कि भारत को हमेशा उसकी असाधारण विविधता से परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा,"वास्तव में, हमारे समाज में केवल 'विविधता' के बजाय 'विविधताओं' की बात करना अधिक उचित है क्योंकि उसमें आस्था और विश्वास, भाषा और सांस्कृतिक प्रथाएं, विभिन्न क्षेत्र और पारिस्थितिकी, इतिहास और परंपराएं समाहित होती हैं। फिर भी व्यापक एकता की भावना हमेशा रही है जिसने हमारे संस्थापकों को हमें अनेकता में एकता की विरासत देने के लिए प्रेरित किया।'' 

श्रीमती गांधीने कहा, "विविधता का जब सम्मान किया जाता है तो यह हमारी एकता और एकजुटता को मजबूत करती है, क्योंकि वास्तव में यह हमारे शानदार संविधान में निहित है जिस पर अब हमला हो रहा है।" श्रीमती गांधी ने लोकतंत्र और इसकी कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण मुद्दा भी उठाया। लोकतंत्र में सरकार बहुमत से बनती है। “लेकिन यदि अधिकांश लोग सहमत हैं, तो क्या बाकी बचे लोगों के पास कोई रास्ता हो सकता है? यदि किसी छोटे समूह के मूल हितों को ठेस पहुंचे तो क्या होगा? यदि अस्थायी बहुमत कोई ऐसा निर्णय लेने पर अड़ा रहे जिसके भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते हैं तो इसका क्या समाधान है? दूसरी ओर, यदि स्थायी लेकिन अल्प बहुमत बनता है, तो क्या उन्हें बिना किसी चुनौती के शासन करने का अधिकार है?

यह मुद्दा विशेष रूप से भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देशों में गंभीर है, जहां लोग कई अलग-अलग पहचान साझा करते हैं और जो उनके लिए मूल्यवान हैं। उन्होंने कहा, "अगर लोग इस बात से चिंतित रहते हैं कि उनकी भाषा या धार्मिक प्रथा या जीवन शैली को केवल इसलिए स्थायी रूप से खतरा हो सकता है क्योंकि उनकी संख्या अधिक नहीं है, तो इससे समाज में शांति या सद्भाव स्थापित नहीं हो पाएगा।"

श्रीमती गांधी ने कहा कि लोकतंत्र आदर्श प्रणाली नहीं है, और जवाहरलाल नेहरू की टिप्पणी उद्धृत की: "लोकतंत्र अच्छा है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अन्य प्रणालियां बदतर हैं… इसमें अच्छे विचार और सुझाव भी निहित हैं और बुरे भी।”

स्वतंत्रता सेनानियों को अन्य देशों के लोकतंत्र के अनुभव से पता था कि यह प्रणाली बीमारियों से ग्रस्त है और इन बीमारियों से बचाव के लिए उन्होंने लिखित संविधान, सरकार के खिलाफ नागरिकों के मौलिक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांत बनाए।

 यह देखते हुए कि भारत में प्रगतिशील लोगों ने हमेशा समय की चुनौतियों का समाधान खोजने की कोशिश की है, उन्होंने कहा- “अब समय आ गया है कि हम भी आज की चुनौतियों का समाधान खोजें, और ऐसा करके, अपने राष्ट्र की सेवा और सम्मान करें।”

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