ग्लोबल आयुर्वेद फेस्ट में विचार-विमर्श किया जाएगा जलवायु परिवर्तन से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों पर
आयुर्वेद को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए 1 से 5 दिसंबर तक केरल की राजधानी में बैठक
New Delhi / November 23, 2023
नई दिल्ली, 23 नवंबर: जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक विनाश के कारण आधुनिक दुनिया की स्वास्थ्य चुनौतियां बढ़ने के साथ-साथ लगातार जटिल भी होती जा रही हैं। 1 से 5 दिसंबर तक तिरुवनंतपुरम में आयोजित होने वाले वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव (ग्लोबल आयुर्वेद फेस्ट-जीएएफ) में मानव, पशुधन और प्राकृतिक स्वास्थ्य को चुनौती देने वाले गंभीर खतरों से स्थायी रूप से बचने के लिए आयुर्वेदिक द्वारा समाधानों के अनुप्रयोग पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा।
जीएएफ के आयोजकों ने कहा कि लंबे समय से उपयोगी, प्रामाणिक समग्र और एकीकृत चिकित्सा प्रणाली के रूप में, आयुर्वेद के ग्रंथ जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के क्षरण और ग्रह पर जीवन पर उनके विनाशकारी प्रभाव से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए सतर्कता व सावधानी से काम करते हैं।
जीएएफ के मुख्य समन्वयक डॉ. सी सुरेशकुमार ने कहा, गौरतलब है कि जीएएफ के आगामी संस्करण का मुख्य विषय "इमर्जिग चैलेंजिस इन हेल्थकेयर एंड ए रिसरजेंट आयुर्वेद" है, जो भारत से आयुर्वेद को दुनिया भर में पहुंचाने और नई संभावनाओं के द्वार खोलने पर बल देगा।
यह पांच दिवसीय महोत्सव तिरुवनंतपुरम के ग्रीनफील्ड इंटरनेशनल स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा।
जीएएफ के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. जी. जी. गंगाधरन ने कहा, ज्ञान प्रणाली और अनुप्रयोग प्रक्रियाओं का एक संपूर्ण समूह है जिसे "पर्यावरण आयुर्वेद" के नाम से जाना जाता है, जिसने जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और पारिस्थितिक विनाश के परिणामस्वरूप होने वाले स्वास्थ्य मुद्दों की भविष्यवाणी की थी।
दुनिया भर में इस बात को लेकर जागरूकता बढ़ रही है कि ज्ञान, सहानुभूति और समावेशिता का सहारा लेते हुए, इस मुद्दे से स्थायी तरीके से निपटना होगा।
इसी प्रकार, ज्ञान की एक शाखा है जिसे "वृक्षायुर्वेद" के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार मनुष्य का स्वास्थ्य और उसके आसपास की हर चीज़ परस्पर जुड़ी हुई और एक-दूसरे पर निर्भर है। यह प्रणाली मानव स्वास्थ्य के लिए औषधीय पौधों के निष्कर्षण और अनुप्रयोग के अलावा, जैव विविधता, प्रकृति के संरक्षण की आवश्यकता और संसाधनों के सतत उपयोग से संबंधित है।
आयुर्वेद, जो बाहरी और आंतरिक स्वरूप की सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत तरीके से देखता है, उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए प्रमाणित प्रभावकारिता के साथ सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा प्रणाली है।
पांच दिवसीय सम्मेलन में दोनों विषयों पर केंद्रित सत्र होंगे जिसमें देश और विदेश के शीर्ष संस्थानों के प्रमुख विशेषज्ञ इस बारे में अपनी अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण साझा करेंगे कि कैसे वैश्विक स्तर पर इन मुद्दों से निपटने के लिए आयुर्वेद का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया जा सकता है, डॉ. गंगाधरन ने बताया।
जीएएफ में एक और दिलचस्प सत्र "एथनो-वेट” (पशु-चिकित्सा) चिकित्सा पर केंद्रित होगा, जिसे आयुर्वेद की भाषा में "मृगचिकित्सा" के रूप में जाना जाता है। सत्र में ज्ञान की इस शाखा, जिसे "पशु आयुर्वेद" के नाम से भी जाना जाता है, के द्वारा निपटाए गए पशु स्वास्थ्य समाधान और उपचार प्रक्रियाओं को पुनर्स्थापित करने की अपार संभावनाओं पर बातचीत होगी।
आयोजकों ने बताया कि भारत में, वैज्ञानिक तर्ज पर एथनो-वेट चिकित्सा प्रणाली विकसित करना, जहां पशुपालन ग्रामीण समुदायों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है, उल्लेखनीय महत्व रखता है।