कलमकारी और केरल के भित्ति-चित्रों से परे भी एक अलग कहानी सुनाते हैं दिल्ली में प्रदर्शित अर्पिता रेड्डी के चित्र

New Delhi / October 22, 2023

नई दिल्ली22 अक्टूबर: तकनीकें भिन्न हैं और शैलियाँ भी। फिर भी केरल के भित्ति-चित्रों के डिजाइन की जटिलता ने अर्पिता रेड्डी को तटीय राज्य को देखने जाने वाली एक किशोरी के रूप में उतना ही आकर्षित किया जितना हाथ की कढ़ाई ने उन्हें हैदराबाद में बड़े होने वाले एक बच्ची के रूप में आकर्षित किया था। विचार, शैली और चीजों को समझने की विद्वता ने काम किया, और राष्ट्रीय राजधानी में चल रही एकल प्रदर्शनी में चित्रकार की वही क्षमता सबके सामने उनके चित्रों के रूप में प्रदर्शित हुई।

सप्ताह भर चलने वाला ‘विश्वात्मा’ शो विजुअल आर्ट (दृश्य कलाओं) की एक श्रृंखला के द्वारा अर्पिता का उसके प्रति जुड़ाव को रेखांकित करता है। इसमें वह शैली शामिल है जो उन्होंने अपने माता-पिता के नलगोंडा क्षेत्र, जो तेलुगु और मुगल संस्कृतियों के मिश्रण के लिए जाना जाता है, के मिरर वर्क में इस्तेमाल की थी, भोपाल के एक कॉलेज में ललित कला में महारत हासिल करने के दौरान उन्होंने जो कुछ सीखा उसका भी इसमें समावेश है। और उन पारंपरिक भित्ति-चित्रों पर किया गया अध्ययन भी शामिल है, जो उन्होंने बाद में गुरुवायुर में संस्थान में शिक्षकों से प्राप्त किया था।

“पारंपरिक कलाओं ने मेरे कौशल को बढ़ाया है। वे मुझे रेखीय कल्पनाओं में गोते लगाने में सक्षम बनाते हैं, जो चमकीले रंगों की बिलकुल पतली परत चढ़ाने से जगमगा उठते हैं, ”विद्वान-आलोचक उमा नायर द्वारा क्यूरेट किए गए 50 चित्रों के 10 से 25 अक्टूबर तक चलने वाले इस शो के दौरान कलाकार ने बताया। अर्पिता कहती हैं, “निश्चित रूप से कॉलेज में प्राप्त औपचारिक शिक्षा मुझे एक परिप्रेक्ष्य देने के लिए परिचित कुछ परंपराओं के साथ समानताएं बनाते हुए, जो उनकी मां भारती रेड्डी द्वारा सिखाई गई परंपराओं से शुरू होती हैं, गहराई और रंगों को समझने में मदद करती है।”

उमा उनकी बात से सहमत हुए मानती हैं कि स्पष्ट रूप से कला महाविद्यालयों से जो प्रशिक्षण अर्पिता ने प्राप्त किया है, उसने उन्हें कला के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण दिया है, फिर चाहे वह पश्चिमी और पूर्वी कला हो या पारंपरिक और समकालीन। वह कहती हैं, "फिर भी मंदिर की भित्ति-चित्रों जैसी पारंपरिक शैली के बारे में काफी हद तक जानना, किसी के कौशल को निखार सकता है क्योंकि उनका संबंध आंतरिक आस्था होता है। हिंदू धर्म का लोकाचार कला के माध्यम से व्यक्तिगत प्रगति के लिए बहुत अधिक खोज करने को प्रेरित करता है क्योंकि सब कुछ भाव और भक्ति से जन्म लेता है।"

प्राचीन दृश्य कलाओं पर अखिल भारतीय प्रस्तुति ने 53 वर्षीय अर्पिता को कुछ समानताओं-और-विभिन्नताओं का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। “उदाहरण के लिए, राजस्थान की फड़ स्क्रॉल पेंटिंग एक रंग संतुलन बनाए रखती है जो केरल के पांच रंगों वाले (पंचवर्ण) भित्ति-चित्रों के काफी समान है” आरंभिक दिनों में जब उन्होंने प्रायद्वीप 'गॉड्स ओन कंट्री' में मंदिर के भित्ति-चित्रों को देखा था, उसकी बात करते हुए कहती हैं।

1997 में कोच्चि की यात्रा के दौरान अर्पिता की नज़र पहली बार केरल के एक भित्ति-चित्र पर पड़ी थी। उपनगरीय मट्टनचेरी में 1545 में निर्मित डच पैलेस में, भित्ति-चित्रों के विशाल पैनलों की जीवंतता ने उन्हें जेएनटीयू कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, हैदराबाद की पूर्व छात्रा के रूप में आकर्षित किया। कुछ साल बाद, केरल का एक युवा भित्ति-चित्रकार भोपाल आया, जहां. अर्पिता अपने पति जो एक सरकारी अफसर हैं गोपाल रेड्डी के साथ रह रही थीं और दो बच्चों की मां बन चुकी थीं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय ने एक कार्यशाला के लिए गुरुवायूर इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूरल पेंटिंग के के.यू. कृष्णकुमार को आमंत्रित किया था। केरल भित्ति-चित्रों के सिद्धांत और अनुप्रयोग, दोनों के बारे में और अधिक जानने के लिए, अर्पिता ने भी एक सप्ताह का वह कोर्स किया। "उस दौरान मैं कला में पूरी तरह से डूब गई।"

बाद में, इस शताब्दी में, अर्पिता को केरल जाने के और अवसर मिले। चाहे वे कोट्टायम हों या त्रिशूर। वह राज्य के मंदिर के भित्ति-चित्रों के बारे में और अधिक सीखने को उत्सुक थीं और उन्होंने यह भी तय किया कि वह निश्चित रूप से, गुरुवायुर इंस्टीट्यूट में भी एक उद्देश्य के साथ रहेंगी, जहां इंस्टीट्यूट के पहले बैच के छात्र कृष्णकुमार अब प्रिंसिपल बन गए थे। ऐसी ही एक यात्रा पर, अनुभवी कलाकार ए.रामचंद्रन की पुस्तक,‘ द एबोड ऑफ गॉड्स’ ने अर्पिता को केरल के मंदिरों में बने शिल्पों और आकृतियों के बारे में अपनी अवधारणा को व्यापक और गहरा करने में सक्षम बनाया।

वहां जो उन्होंने देखा उसकी झलक ‘विश्वात्मा’ नामक शो में देखने को मिलती है जो इस बुधवार को समाप्त हो रहा है। सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक इस शो को देखा जा सकता है। (दिवंगत) आर्ट हिस्टोरियन विजयकुमार मेनन के अनुसार, अर्पिता केरल के भित्ति-चित्रों की "आकर्षक विशिष्टता" से प्रभावित हैं। उन्होंने अपने 2017 के मुंबई में हुए शो ‘उद्भवम’ की प्रस्तावना में लिखा है,“उन्होंने शैली के रंग संयोजन, आकार को रूप देने, अलंकरण, रूपांकन, शैलीगत भावों और मुद्राओं, अत्यंत जटिल कृतियों और सूक्ष्म छायांकन को अच्छी तरह से समायोजित किया है।” यह शो प्रतिष्ठित जहांगीर आर्ट गैलरी में था, जहां उमा ने इस साल की शुरुआत में (14 से 20 फरवरी) अर्पिता के शो ‘वसुंधरा’ को क्यूरेट किया था।

अर्पिता अपने चित्रों के बारे में बताते हुए कहती हैं: "मेरी कुछ आकृतियां केरल के भित्ति-चित्रों में बनी चोल राजवंश की कांस्य की मूर्तिकला के समान हैं। यहां तक कि ओडिशा के पट्टचित्र के साथ, केरल भित्ति-चित्रों की सजावटी मणिमाला के समान एक सफेद-बिंदीदार फिनिश जोड़ने से मुख्य कथानक पर ध्यान केंद्रित करने और इसकी सुंदरता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।" उमा के अनुसार, "जो कुछ भी उन्होंने देखा है, उसका अध्ययन करने और उन्हें अपने सौंदर्यशास्त्र में समाहित करने की अर्पिता में क्षमता है।"

केरल शैली के भित्ति-चित्र ‘विश्वात्मा’ में विशिष्ट अध्ययन का हिस्सा हैं, जो मुख्य रूप से तीन खंडों को प्रदर्शित करते हैं: नामम, दशावतार और सुमंगला। कुल मिलाकर, यह शो पौराणिक कथाओं के कथानकों और आकृतियों की फिर से रचना कर उपमहाद्वीप के भित्ति-चित्रों के सौंदर्यशास्त्र को और समृद्ध करता है।

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